गुरुवार, 6 जनवरी 2011

आकाश नहीं बनना चाहती मै















आकाश नहीं बनना चाहती मै ,
वहां कुछ नहीं केवल शुन्य है,
आकाश नहीं छूना मुझे
वहां कुछ नहीं केवल ऊचाईयाँ है
आकाश नहीं देखना मुझे
वहां कुछ नहीं सूर्य की तपिश है,
चंद्रमा की जलन है
मै धरती की प्राणी
मुझे धरती में रहना है
यंहा शुन्य नहीं सारा संसार है
ऊचाईयाँ नहीं धरती की गोद है
दूरियाँ नहीं अपनों का साथ है
सूर्य की तपिश नहीं खुशियों की छांव है
आकाश नहीं बनना चाहती मै
धरती की प्राणी, धरती में रहना है

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