गुरुवार, 6 जनवरी 2011

आज फिर तेरी याद आई है


आज फिर तेरी याद आई है,
जब उस सुहानी शाम को,
तुम मिले थे मुझसे ,
इसी शाख के नीचे ,
उन दो अजनबी आँखों से देखते ,
आज फिर .................
जब उस सुरमई शाम को ,
तुमने किया था अपनी मुहब्बत का इजहार ,
इसी शाख के नीचे,
उन दो प्यारी आँखों से देखते,
आज फिर...................
जब उस सिंदूरी शाम को
तुमने वादा किया था ,
जनम जनम सांथ निभाने का
इसी शाख के नीचे ,
उन दो मुस्कुराती आँखों से देखते,
आज फिर ....................
जब उस घनी शाम को
तुम आये थे मुझसे मिलने
अपने वादों को तोड़ने,
इसी शाख के नीचे,
उन दो छली आँखों से देखते,
आज फिर ..........................
इस बेनामी शाम को
जब कड़ी हूँ मै
इसी शाख के नीचे
बन के खुद से अजनबी
समेटी हुई उन यादों को
जो जिवंत थे कभी
तुम्हारे साथ,
अपनी इस निस्तेज , नीरस आँखों से देखते.

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