गुरुवार, 25 मार्च 2010

विचार

सफल व्यक्ति कठिनाई से भरे समय में भी पूरा संतुलन बनाये रखते हैं। वे वर्तमान में जीना पसंद करते हैं, क्योंकि उन्हें पता है की केवल वर्तमान पर ही नियंत्रण किया जा सकता है।
सकारात्मक सोच और सफलता एक दुसरे से जुड़े हुय्र हैं, हम जिंदगी को जिस नजरिये से देखेंगे ,जिंदगी हमें वैसे ही दिखाई देगी। हमारी सोच जीतनी सकारात्मक होगी, जीने के प्रति हमारा रवैया उतना ही जोशीला होगा। जिन्दगी हमें खुदबखुद खुबसूरत दिखने लगेगी।
किसी दोस्त या करीबी के कामयाब होने पर हम यह सोचने लगें की उसकी किस्मत हमारी किस्मत से ज्यादा अच्छी है या वह हमसे जयादा काबिल है, सच बात तो यह है की ऐसी सोच ही हमें असफलता की ओर ले जाती है। हमें अपनी नकारात्मक सोच बदल कर सफलता पाने के लिए सबसे पहले सपने देखना होगा इसका अर्थ यह नहीं की सिर्फ सपने ही देखते रहें वरण उन सपनों को सच में बदलने के लिए सकारात्मक सोच के साथ उस दिशा में बढ़ना होगा, क्योंकि सफलता या कामयाबी अच्छे किस्मत वालों को नहीं वरण जीवन के प्रति सकारात्मक सोच रखने वालों को मिलाती है।

व्यक्तित्व विकास

आज शाम को महिलाओं की पत्रिका 'गृहलक्ष्मी ' पढ़ रही थी उसमे एक स्तम्भ 'व्यक्तित्व विकास ' पढ़ी उसमे कुछ पाठको ने आपने वय्क्तिताव की खामियों व उसके विकास से सम्बंधित कुछ सवाल किये थे जिनका उत्तर हमारे लिए भी उपयोगी साबित हो सकता है अतः आप सबके लिए उन्ही के कुछ अंश :-
बोलना :- सहीं बोलें, समय पर बोलें , सहीं व्यक्ति के सामने बोलें, संक्षिप्त बोलें, सप्रमाण बोलें और सहीं शैली में बोलें। आवश्यकता से ज्यादा
बोलने से गरिमा कम होती है। कम बोलने से भावनाएं ठीक से व्यक्त नहीं हो पाती, अंतत: बैलंस जरुरी है।
व्यक्तित्व की सबसे बड़ी ताकत :- 'सकारात्मक सोच ' व्यक्तित्व की सबसे बड़ी ताकत होती है। यदि सोच सहीं होगी तो कार्य भी होगा । यदि सोच गलत होगी तो शुरुआत हई गलत हो जायगी। यदि सोच में हीनभावना या नकारात्मक होगी तो आप कोई भी कार्य मन से नहीं कर पाएंगे। इसलिए अच्छा सोचें, अपने बारे में और दुनिया के भरे में भी। सहीं सोचेंगे तो ही समस्यायों का समाधान ढूंढ़ पाएंगे। नहीं तो स्वयं समस्या बनकर रह जायेंगे।

गुरुवार, 18 मार्च 2010

आदमी

आश्रय देने पर सिरपर चढ़ता है।
२ उपदेश देने पर मुड़कर बैठता है ।
३ आदर करने पर खुशामद समझता है।
४ उपकार करने पर अस्वीकार करता है।
५ विश्वास करने पर हानि पहुंचता है।
६ क्षमा करने पर दुर्बल समझता है।
७ प्यार करने पर आघात करता है।
क्या यह चरित्र उचित है ?

१ आश्रय देने पर उसका हमेशा एह्सामन्द होना चाहिए।
२ कोई अच्छे कार्य के लिए कुछ उपदेश दे तो उसका पालन करना चाहिए।
३ कोई सच्चे मन से आदर सत्कार करे तो उसकी प्रतिष्ठा बनाए रखनी चाहिए।
४ कोई ह्रदय से उपकार करे तो उसे सच्चे मन से ग्रहण करना चाहिए।
५ विश्वास करने पर उसे कभी ठेस नहीं पहुंचाना चाहिए।
६ अपनी गलती पर कोई हमें क्षमा करता है उसे दुर्बल नहीं समझना चाहिए बल्कि उसका एह्सामंद होना चाहिए।
७ यदि कोई हमसे प्यार करे तो उसके प्यार एवं विश्वास को हमेशा बनाए रखना चाहिए।

- ऐसा ही व्यक्ति चरित्रवान है।

पितृ देवो भवः

पिता देव है। माँ की ममता धरती से भी भरी है और पिता का स्थान आकाश से भी ऊँचा है, क्योंकि बेटे के लिए पिता के अरमान आकाश से भी ऊँचे होते हैं।
दुनिया में कोई किसी को अपने से आगे बढ़ता और ऊँचा उठता नहीं देख सकता। एक पिता हई है, जो अपनी संतान को अपने से सवाया होता हुआ देख कर खुश होता है।
देश के नौजवानों ! अपने पर्स में रूपये की जगह अपने पिता की तस्वीर रखिये क्योंकि उस तस्वीर ने हई तुम्हारी तक़दीर संवारी है। पेड़ बुध हई संही, आँगन में लगा रहने दो। फल न संही , छाँव तो देगा।

अब समझ आया

मेरे पतिदेव इसे कंही से लाये थे। अब आप सब के साथ बाँट रही हूँ।
अपने जीवनकाल में उम्र के हर पड़ाव पर हर व्यक्ति का अपने पिता की ओर देखने का नजरिया
४ वर्ष की आयु में - मेरे पितेजी महान हैं।
६ वर्ष की आयु में - मेरे पिता सबकुछ जानते हैं।
१० वर्ष की आयु में - मेरे पिता बहुत अच्छे हैं, लेकिन गुस्सा बहुत जल्दी होते हैं।
१३ वर्ष की आयु में - मेरे पिता बहुत अच्छे थे जब मै छोटा था।
टीन एज का प्रारम्भ
१४ वर्ष की आयु में - मेरे पिताजी बहुत तुनकमिजाज होते जा रहे हैं।
१६ वर्ष की आयु में - पिताजी ज़माने के साथ नहीं चल पाते, बहुत पुराने ख्यालात के हैं।
१८ वर्ष की आयु में - पिताजी तो लगभग संकी हो चले हैं।
२० वर्ष की आयु में -हे भगवन अब तो पिताजी को झेलना मुश्किल होता जा रहा है, पता नहीं माँ उन्हें
कैसे सहन कर पाती हैं।
२५ वर्ष की आयु में - पिताजी तो मेरी हर बात का विरोध करतें हैं।
३० वर्ष की आयु में - मेरे बच्चे को समझाना बहुत मुश्किल होता जा रहा है, जबकि मै अपने पिताजी
से बहुत डरता था, जब मै छोटा था।
४० वर्ष की आयु में - मेरे पिताजी ने मुजको बहुत अनुशासन के साथ पाला। मुझे भी अपने बच्चे के
साथ ऐसा हई करना चाहिए।
४५ वर्ष की आयु में - मै आश्चर्यचकित हूँ कि कैसे मेरे पिता ने हमें बड़ा किया होगा।
५० वर्ष की आयु में - मेरे पिता ने हमें यंहा तक पहुचने के लिए बहुत कष्ट उठाये, जबकि मै अपनी
औलाद कि देखभाल हई ठीक से नहीं कर पाता।
५५वर्श की आयु में - मेरे पिताजी बहुत दूरदर्शी थे और उन्होंने हमारे लिए कई योजनाएं बनाईं थीं। वे
अपने आप में बेहद उच्चकोटि के इंसान थे।
६० वर्ष की आयु में - वाकई मेरे पिताजी महान थे।
अर्थात ' पिता महान है' इस बात को पूरी तरह से समझने में व्यक्ति को ५६ वर्ष लग जाते हैं।